Akhand ShivBaba

21.01.1969

"...जिन बच्चों को बाबा निमित्त रखते हैं उन्हों द्वारा बापदादा सभी बच्चों को डायरेक्शन देते रहेंगे।

और बच्चे अनुभव करते रहेंगे कि कैसे बापदादा की इक्टठी डायरेक्शन होगी।

संगमयुग पर बापदादा दोनों को अलग नहीं होना है।

बाबा ने कहा सभी को दो शब्द कहना - अटल और अखण्ड।

यह बापदादा दोनों की सौगात है।

जैसे कोई बड़े लोग कहाँ जाते हैं तो सौगात देते हैं।

ऐसे बापदादा दोनों ही दो शब्दों की सौगात देते हैं अटल और अखण्ड। ..."

 

 

 

29.10.1970

"...दीपक कौन से अच्छे लगते हैं?

जो दीप अखण्ड और अटल होता है, जिसका घृत कभी खुटता नहीं, वही अखण्ड जलता है।

अपने को ऐसा दीपक समझते हो?

ऐसे दीपकों की यादगार माला है।

अपने को माला के बीच चमकता हुआ दीपक समझते हो? ..."

 

 

 

 

30.05.1971

"...सदाकाल की प्राप्ति के लिए ही तो बाप के बच्चे बने।

फिर भी अल्पकाल का अनुभव क्यों?

अटूट, अटल अनुभव होना चाहिए।

तब ही अटल, अखण्ड स्वराज्य प्राप्त करेंगे। ..."

 

 

 

15.05.1972

"...इस समय ऐसे पद्मापति अर्थात् अविनाशी सम्पत्तिवान बनते हो जो सारा कल्प सम्पत्तिवान गाये जाते हो।

आधा कल्प स्वयं विश्व के राज्य के, अखण्ड राज्य के निर्विघ्न राज्य के, अधिकारी बनते हो और फिर आधा कल्प भक्त लोग आपके इस स्थिति के गुणगान करते रहते हैं।

कोई भी भक्त को जीवन में किसी भी प्रकार की कमी का अनुभव होता है तो किसके पास आते हैं?

आप लोगों के यादगार चित्रों के पास।

चित्रों से भी अल्पकाल की प्राप्ति करते हुए अपनी कमी वा कमजोरियों को मिटाते रहते।

तो सारा कल्प प्रैक्टिकल में वा यादगार रूप में सदा सम्पत्तिवान, शक्तिवान, गुणवान, वरदानी-मूर्त बन जाते हो। ..."

 

 

 

02.05.1974

"...जिस राज्य के मुख्य अधिकारी अपने अधिकार में न हों, क्या वह राज्य अटल, अखण्ड, और निर्विघ्न चल सकता है?

यह मन और बुद्धि आप आत्मा की समीप शक्तियाँ व मुख्य राज्य अधिकारी हैं, व कार्य अधिकारी हैं, यदि वह भी वश में नहीं, तो ऐसे को क्या कहा जायेगा?

महान् विजयी या महान् कमज़ोर?

तो अपने आपको देखो कि क्या मेरे मुख्य राज्य-अधिकारी, मेरे अधिकार में हैं?

अगर नहीं, तो विश्व राज्य अधिकारी अथवा राजन् कैसे बनेंगे?

अपने ही छोटे छोटे कार्यकर्त्ता अपने को धोखा दें, तो क्या ऐसे को महावीर कहा जायेगा?

चैलेन्ज तो करते हो, कि हम लॉ और ऑर्डर सम्पन्न राज्य स्थापित कर रहे हैं।

तो चैलेन्ज करने वाले के यह छोटे-छोटे कार्यकर्ता अर्थात् कर्मेन्द्रियाँ अपने ही लॉ और आर्डर में नहीं, और वे स्वयं ही कार्यकर्त्ता के वशीभूत हों तो क्या ऐसे वे विश्व में लॉ और ऑर्डर स्थापित कर सकते हैं?

हर कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक अपने अधिकार में हैं?

यह चैक करो और अभी से विजयीपन के संस्कार धारण करो।..."

 

 

 

 

20.09.1975

"...सागर अखण्ड, अचल और अटल होता है।

सागर की विशेष दो शक्तियाँ सदैव देखने में आयेंगी - एक समाने की शक्ति, जितनी समाने की शक्ति है उतनी सामना करने की भी शक्ति है।

लहरों द्वारा सामना भी करते हैं और हर वस्तु व व्यक्ति को स्वयं में समा भी लेते हैं।

तो मास्टर सागर होने के कारण अपने में भी देखो कि यह दोनों शक्तियाँ मुझ में कहाँ तक आई हैं?

अर्थात् कितने परसेन्टेज में हैं?

क्या दोनों शक्तियों को समय-प्रमाण यूज़ कर सकते हो?

क्या शक्तियों द्वारा सफलता का अनुभव होता है? ..."

 

 

 

 

02.02.1977

"...सदा स्मृति की ज्योति जगी हुई है?

बुझ तो नहीं जाती?

अखंड ज्योति अर्थात् कभी भी बुझने वाली नहीं।

आपके जड़ चित्रों के आगे भी ‘अखण्ड ज्योति’ जगाते हैं।

चैतन्य अखण्ड ज्योति का ही वह यादगार है तो चैतन्य दीपक बुझ सकते हैं?

क्या बुझी हुई ज्योति अच्छी लगती है?

तो स्वयं को भी चेक करो, जब स्मृति की ज्योति बुझ जाती है तो कैसा लगता होगा?

क्या वह अखण्ड ज्योति हुई?

ज्योति की निशानी है - सदा स्मृति स्वरूप और समर्थी स्वरूप होगा।

स्मृति और समर्थी का सम्बन्ध है।

अगर कोई कहे स्मृति तो है कि बाबा का बच्चा हूँ, लेकिन समर्थी नहीं है, यह हो ही नहीं सकता।

क्योंकि स्मृति ही है कि ‘मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ।’

मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् समर्थ स्वरूप। ..."

 

 

 

 

02.06.1977

"...निर्विघ्न हो ना?

अखण्ड योगी हो?

योग कब खंडन तो नहीं होता?

जिससे प्रीत होती, वह प्रीत की रीति निभाने वाले अखंड योगी होते।

आजकल जो महान आत्माएं भी कहलाती हैं उन्हों के नाम भी अखंडानन्द हैं, लेकिन सब में अखंड स्वरूप तो आप हो ना!

आनन्द में भी अखंड, सुख में भी अखंड..... सबमें अखंड हो?

वातावरण और वायब्रेशन का भी सहयोग है, भूमि का भी सहयोग है, तो मधुबन निवासियों के लिए सहज है - सिर्फ संगदोष में न आएं, दूसरा - दूसरे के अवगुणों को देखते-सुनते ‘डोन्ट केयर।’

तो इस विशेषता से अखंड योगी बन सकते।

अगर कोई के संगदोष में आ जाते या अवगुण देखते तो योग खंडित होता।

जो अखंड योगी नहीं वह पूज्य नहीं हो सकते, अगर योग खंडित होता तो थोड़े समय के लिए पूज्य होंगे; सदा का पूज्य बनना है ना।

आधा कल्प स्वयं पूज्य-स्वरूप, आधा कल्प जड़ चित्रों का पूजन।

ऐसे हो?..."

 

 

 

 

18.01.1978

"... बेहद बाप को भी हद के नम्बर लगाने पड़ते हैं।

नहीं तो बाप और बच्चों का मिलना दिन-रात क्या है?

आपकी दुनिया में यह सब बातें हैं।

वहाँ तो सब बाप के समीप हैं।

बिन्दु क्या जगह लेगी, यहाँ तो शरीर को जगह चाहिए, वहाँ समीप हो ही जायेंगे।

यहाँ हरेक आत्मा समझती हम समीप आयें।

जितना जो बाप के गुणों में, स्थिति में समीप उतना वहाँ स्थान में भी समीप, चाहे घर में, चाहे राज्य में।

स्थिति स्थान के समीप लाती है।

यही कमाल है जो हरेक समझता है मैं समीप और समीप का अनुभव भी करता है क्योंकि बेहद का बाप अखुट है, अखण्ड है इसलिए सभी समीप हो सकते हैं।

सन्तुष्ट रहना और करना।

यही वर्तमान समय का स्लोगन है।

असन्तुष्ट अर्थात् अप्राप्ति।

सन्तुष्ट अर्थात् प्राप्ति।

सर्व प्राप्ति वाले कभी भी असन्तुष्ट नहीं हो सकते। ..."

 

 

 

 

 

16.02.1978

"...आज बाप-दादा हरेक के प्राप्ति की लकीर देख रहे थे कि सदाकाल और स्पष्ट लकीर है ?

जैसे हस्तों द्वारा आयु की लकीर को देखते हो ना।

आयु लम्बी है, निरोगी है।

बाप-दादा भी लकीर को देख रहे थे।

तीनों ही प्राप्तियाँ जन्म होते अभी तक अखण्ड रही हैं वा बीच-बीच में प्राप्ति की लकीर खण्डित होती है।

बहुत काल रही है वा अल्पकाल।

रिजल्ट में अखण्ड और स्पष्ट उसकी कमी देखी।

बहुत थोड़े थे जिनकी अखण्ड थी लेकिन अखण्ड भी स्पष्ट नहीं, ना के समान।

लेकिन बीती सो बीती।

वर्तमान समय में जबकि विश्व सेवा की स्टेज पर हीरो और हीरोइन पार्ट बजा रहे हो उसी प्रमाण यह तीनों ही प्राप्तियाँ मस्तक और नयनों द्वारा सदाकाल और स्पष्ट दिखाई देनी चाहिए।..."

 

 

 

 

01.01.1979

"...ज्ञान मूर्त से ज्यादा अभी वरदानी मूर्त का पार्ट चाहिए।

सुनने की शक्ति भी नहीं हैं।

चलने की हिम्मत नहीं है सिर्फ एक प्यास है कि कुछ मिल जाए - ऐसी अनेक आत्माएं विश्व में भटक रही हें - चलने के पांव अर्थात् हिम्मत भी आपको देनी पड़ेगी।

तो हिम्मत का स्टाक जमा है!

अमृत कलश सम्पन्न है!

अखुट है!

अखण्ड है!

क्यू लगावें?

स्वयं की क्यू समाप्त की है - अगर स्वयं की क्यू में बिजी होंगे तो अन्य आत्माओं को सम्पन्न कैसे बनावेंगे! ..."

 

 

"...सदा मुख पर वा संकल्प में बापदादा - बापदादा की निरन्तर माला के समान स्मृति हो।

सबकी एक ही धुन हो बाप-दादा। संकल्प, कर्म और वाणी में यही अखण्ड धुन हो - जैसे वह अखण्ड धुनी जगाते हैं वैसे यह अखण्ड धुन हो।

यही अजपाजाप हो - जब यह अजपाजाप हो जावेगा तो और सब बातें स्वत: ही समाप्त हो जावेंगी।

क्योंकि इसमें ही बिजी रहेंगे।

फुर्सत ही नहीं होती तो व्यर्थ स्वत: ही समाप्त हो जावेगा।..."

 

 

 

 

25.01.1979

"...सिर्फ एक ही श्रीमत बुद्धि में हो - सुनो तो भी बाप से - बोलो तो भी बाप का - देखो तो भी बाप को, चलो तो भी बाप के साथ, सोचो तो भी बाप की बातें सोचो, करो तो भी बाप के सुनाये हुए श्रेष्ठ कर्म करो।

इसको कहा जाता है बाप के रिगार्ड का रिकार्ड।

ऐसे चैक करो कि पहली बात में रिकार्ड फर्स्ट क्लास रहा है वा सेकेण्ड क्लास।

अखण्ड रहा है वा खण्डित हुआ है, अटल रहा है या माया की परिस्थितियों प्रमाण रिगार्ड का रिकार्ड हलचल में रहा है।

लकीर सदा सीधी रही है वा टेढ़ी बाँकी भी रही है। ..."

 

 

 

 

21.11.1979

"...जो सदा बाप और सेवा में तत्पर रहते हैं, उनकी निशानी क्या होगी?

सदा विघ्न-विनाशक - कोई भी विघ्न उनकी लगन को मिटा नहीं सकते।

कोई भी तूफान उस जागती ज्योति को बुझा नहीं सकते।

ऐसी जागती-ज्योति हो?

अखण्ड ज्योति।

भक्ति में भी आपके चित्रों के आगे अखण्ड ज्योति जलाते हैं।

क्यों जलाते हैं?

चेतन्य स्वरूप में अखण्ड ज्योति स्वरूप रहे हो तब अखण्ड ज्योति का यादगार रहता है।

ज्योति के आगे कोई आवरण तो नहीं आता, तूफान हिलाता तो नहीं हैं?

अपना भी स्वरूप ज्योति, बाप भी ज्योति और घर भी ज्योति तत्व है।

तो सिर्फ ज्योति शब्द भी याद रखो तो सारा ज्ञान आ जाता है।

यही एक ‘‘ज्योति’’ शब्द की सौगात ले जाना तो सहज ही विघ्न-विनाशक हो जायेंगे! ..."

 

 

 

 

17.12.1979

"...सदा जागती ज्योत बनो इसीलिए यादगार मन्दिरों में भी अखण्ड ज्योति जगाते हैं।

बुझने नहीं देते।

अखण्ड ज्योति जगाने का फैशन पड़ा कहाँ से?

संगम पर तुम सब चेतना में जागती ज्योति बने हो तभी यह यादगार चला आता है।

अगर खण्डन हो जाती हैं तो बुरा मानते हैं।

तो चैतन्य में आप सब क्या हैं?

अखण्ड ज्योति, खण्डित चीज़ कभी भी पूज्य हो नहीं सकती।..."